Monday, September 29, 2025

समाज में लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं न्याय प्रक्रिया

किसी ने कहा है,
*"इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है!*
*नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है!*
*एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ, दोस्तों,*
*इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है!"*

बहुत कुछ है जो विचारणीय है, बहुत कुछ है जो निराकृत नहीं है, बहुत कुछ है जो अनिर्धारित एवं अनिश्चित है, और *यहां तक कि बहुत कुछ ऐसा भी है जो असाध्य भी है..*

*यह सब कभी न खत्म होने वाली एक निरंतर प्रक्रिया है.*

सुखद यह है, कि बावजूद इन सबके, *"आम समाजजन को इस लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं सामाजिक न्याय प्रक्रिया में भरोसा है."* और यह भरोसा बना रहे, यह जिम्मेदारी भी हमारे नेतृत्वकर्ताओं की है, फिर वो चाहे पक्ष से हों, अथवा विपक्ष से.

आप ताकतवर हैं, सत्ता आपके पास है, तो जिम्मेदियां भी आपकी हैं, सवाल भी आपसे ही किये जायेंगे, नाराजगी एवं असहमति भी आपसे व्यक्त की जायेगी, आलोचना या सराहना भी आपकी की जायेगी, एवं अपेक्षाएं भी आपसे ही रखी जायेंगी.

*दृष्टिकोण सबके भिन्न हैं, विचारधाराएं अलग अलग हैं, कार्यशैली में भिन्नताएं हैं, और अनेकों तरहों की भिन्नताएं हो सकती हैं. लेकिन ये सारी भिन्नताएं, "विविधताओं" का प्रतीक होना चाहिये, अलगाव का नहीं. क्योंकि हम सबका बुनियादी उद्देश्य एक ही है, "सामाज का मूलभूत विकास", जिसमें सम्मिलित है निष्पक्ष रूप से प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति के लिये स्वतंत्रता, एवं समानता.


"मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंज़िल, मगर,
*लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!"*

एक अकेला व्यक्ति बिना सहयोग के सामाजिक व्यवस्था का सुचारू संचालन नहीं कर सकता. इन सबके बीच हमारा प्रयास होना चाहिये कि हमारे बीच मन-भेद अथवा व्यक्तिगत मतभेद न हों, क्योंकि *इन मतभेदों का नकारात्मक प्रभाव समाज की आंतरिक संरचना पर तो पड़ता ही है, शासन-प्रशासन स्तर पर भी हमारा सामाजिक नुकसान होता है.*

*भिन्न विचारधाराएं होने के बावजूद देश की स्वतंत्रता के लिये चंद्रशेखर आजाद और भगतसिंह जैसे महान क्रांतिकारी एकसाथ आ सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?*

इस मौके पर देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, सम्माननीय अटल बिहारी बाजपायी का वो कथन याद आता है,

*"सरकारें आती जाती रहेंगी, पार्टियां बनती बिगड़ती रहेंगी, लेकिन यह देश (इस संदर्भ में सामाजिक व्यवस्था) बने रहना चाहिये!"*

*जय श्री राम!*
☺️🙏


Professor Abhishek Vaniya

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समाज में लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं न्याय प्रक्रिया

किसी ने कहा है, *"इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है!* *नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है!* *एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ, दोस्त...