Friday, September 27, 2024

तथाकथित धर्म, क्यों?

 हर जगह धर्मों का झगड़ा है, साहब!

मेरे आधिकार क्षेत्र में होता, तो मैं सबसे पहले दुनिया के सभी तथाकथित धर्मों, महजबों, पंथों पर बैन लगा देता. दुनिया के किसी भी कोने में हमें किसी भी तथाकथित धर्म की आवश्यकता नही है..

सनातन संस्कृति या अन्य तथाकथित धर्मों को मैं धर्म के बजाये दर्शन मानता हूं, जिनका वास्तविक स्वरूप हम भूल चुके हैं.

जिस तरह महान श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा की परम्परा को बंद करके गोवर्धन पर्वत की पूजा की परम्परा शुरू की थी, मैं भी सारे तथाकथित देवी देवताओं के स्थान पर प्रकृति, धरती, पेड़ पौधे, जंगल, पहाड़, पशु पक्षियों, नदियां, किताबें (ज्ञान).. आदि की पूजा कराता (मैं स्वयं अब भी यही करता हूं).



वास्तव में हमारा सनातन धर्म और भारतीय दर्शन हमें प्रकृति की पूजा करने के लिये ही प्रेरित करते है. प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को ही हम मूर्तियों और आकृतियों के रूप में पूजते हैं. पर दुख की बात यह है कि उस पूजन के पीछे का उद्देश ही हमने ताक पर रख दिया है.

हम सरस्वती माता को तो पूजते हैं, पर वो जिस ज्ञान का प्रतीक हैं, उस ज्ञान को पाना तो छोड़िये, हम ज्ञान का सम्मान भी नही करते हैं.

हम देवी लक्ष्मी को तो पूजते हैं, पर जिस माध्यम से हमें लक्ष्मी (धन) प्राप्त होता है, उसी माध्यम (उदाहरण शासकीय सेवा) का हम सम्मान नहीं करते, अपना कर्तव्य ठीक से नही निभाते (कितने ही भ्रष्टाचार सरकारी नौकरी वाले करते हैं).

हम धरती माता को तो पूजते हैं, पर धरती माता को कितना हमने बिगाड़ रखा है. हमने नदियों, पर्वतों, जंगलों, मिट्टी, कुछ भी नहीं छोड़ा है, सबकुछ प्रदूषित करके रख दिया है. नदियां हमने प्रदूषित कर दीं, जंगल हमने काट दिये, पहाड़ काट दिये, पशु पक्षियों की लाखों प्रजातियां विलुप्त हो गईं, और लाखों विलुप्ती की कगार पर हैं.. 

भारतीय दर्शन एवम सनातन संस्कृति में मूर्ति पूजा का जो मूल आधार था कि प्रकृति हमारी जीवनदायिनी है, इसीलिए हमें प्राकृति का सम्मान करना है, हमें प्रकृति की रक्षा करनी है. और इसीलिये हमने प्राकृति के विभिन्न स्वरूपों को विभिन्न प्रतीकों (सरस्वती माता, लक्ष्मी माता, सूर्य देव, नर्मदा मैया, गंगा मैया, धरती माता आदि) के रूप में पूजना शुरु किया था.

पर उस प्रतीक को पूजने के पीछे का मुख्य उद्देश ही हम भूल गये हैं, और सिर्फ़ प्रतीक पर रुक गये हैं. प्राकृति की रक्षा और सम्मान करने की बजाये, हमने प्राकृति को सिर्फ भोगना शुरु कर दिया है.

क्या यही वजह नही है, कि इतना मजबूत, सक्षम, और हर तरह से वैज्ञानिक सनातन धर्म आज इतना कमजोर हो गया है?

✍️ अभिषेक वानिया
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