Sunday, August 6, 2023

ग़ज़ल: "आवश्यकता क्या है!"

तलब है, तो सब्र की आवश्यकता क्या है!
दवा ए दर्द की आवश्यकता क्या है!

मयख़ाने में हैं, तो जी भरकर लीजिए,
इन छोटे पैमानों की आवश्यकता क्या है!

तबाह तो होना है मुक्कमल जहां को इक दिन,
फ़िक्रमंदी ए सितम की आवश्यकता क्या है!

जंग ए ज़िंदगी तो अनवरत है,
अंजाम की, इसके, आवश्यकता क्या है!

ज़मीं ओ आसमां, सारा जहां है हमारा,
दो गज़ के ठिकानों की आवश्यकता क्या है!

मैं मशग़ूल हूं, सफ़र ए ज़िंदगी मे,
दख़लअंदाजी की आवश्यकता क्या है!

मिजाज मिरा, तो यूं भी बदनाम है,
बेवजह ग़फ़लतों की आवश्यकता क्या है!

किस क़दर खुला हूं मैं, जरा आकर तो देखिए,
चिलमनों से झांकने की आवश्यकता क्या है!

आसमां भी होगा, बुलंदियां भी होंगी,
पंख फड़फड़ाने की आवश्यकता क्या है!

अजी.., कुछ तो सब्र कीजिए जनाब,
इस जल्दबाज़ी की आवश्यकता क्या है!

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