"निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा."
रामचरित्रमानस में महाकवि तुलसीदास जी द्वारा कही गईं ये पंक्तियां मुझे अत्यंत प्रिय हैं.
वैसे तो इन पंक्तियों का संदर्भ रामचरित्रमानस है, पर वास्तव में इनका महत्त्व सार्वभौमिक है. जो आज भी उतना ही है जो त्रेता युग एवम महाकवि तुलसीदास जी के युग में रहा होगा.
प्रसंग प्रायः आप सभी को पता होगा, ये तब की बात है जब विभीषण जी महाराज रावण के दरबार में अपमानित होकर प्रभु श्री राम की शरण में आये थे. मैं उस विषय में ज्यादा बात नहीं करुंगा. यहां मैंने इस चौपाई की एक सामान्य व्याख्या करने की कोशिश की है.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन पंक्तियों को हम ईमानदारी, निष्ठा, सादगी, सहजता आदि के संदर्भ में हमारे व्यक्तिगत, व्यवसायिक एवम अन्य तरह के संबंधों, सफलताओं, असफलताओं आदि से जोड़ कर देख सकते हैं.
संबंधों का टूटना अथवा अस्वीकृति, परीक्षा में अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होना, व्यवसाय में उचित लाभ न होना, आदि की वजह से एक अच्छा से अच्छा व्यक्ति भी टूट सकता है, हतोत्साहित हो सकता है.
अक्सर नकारात्मक परिणाम एक अच्छे व्यक्ति को निराश कर देते हैं, विशेषकर जब वह अपनी संक्रमणकालीन अवस्था में होता है, अपरिक्वता से परिक्वता की ओर अग्रसर होता है. पर वास्तव में ये नकारात्मक परिणाम ही होते हैं जो एक व्यक्ति को परिपक्व एवम अधिक दृढ़ बनाते हैं.
इन नकारात्मक परिणामों से जो अनुभव हमें मिलता है, जो सीखें हमें मिलती हैं, वो कोई शिक्षण संस्थान या कोई व्यवसायिक परामर्शदाता आपको नहीं दे सकता.
थोड़ा विश्लेषण करने पर आपको समझ आता है कि कहां और क्या गलतियां हुई हैं, कहां संतुलन नहीं बन पाया. फिर आपका कार्य एवम प्रदर्शन पहले से कहीं बेहतर होता है. बेहतर परिणाम आपको मिलते हैं, कई बार आपकी अपेक्षा से भी बेहतर.
खैर, परिणाम जो भी हो, वह द्वितीयक है. प्राथमिक है व्यक्तित्व विकास, जिसमें आपका चरित्र, व्यवहार आदि सम्मिलित हैं.
परिणाम से कहीं अधिक महतवपूर्ण है आपका व्यक्तित्व, आपकी ईमानदारी, आपकी निष्ठा, सादगी, सहजता, सरलता आदि. आप स्वयं में सकारात्मकता को बनाए रखते हैं तो परेशानियों का सामना आपको करना पड़ सकता है, पर अंत में जीत आपकी होगी, जो निश्चित है. इस तथ्य को आप चाहें विज्ञान के संदर्भ में देखें, चाहे दर्शन या चाहे आध्यात्म, आपको सकारात्मक परिणाम मिलना तय है.
यह समय आपके जीवन में पतझड़ की तरह होता है. आपको लगता है कि आपका नुकसान हो रहा है, पर वास्तव में आपका जीवन एवं आपका व्यक्तित्व पहले से बेहतर होने जा रहे हैं.
कुछ असफलताएं, कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं, कुछ वक्त के लिये आपको प्रभावित तो कर सकती हैं, पर आपका मूलभूत व्यक्तित्व नहीं बदल सकतीं. असफलताओं के चलते आपको अपने सिद्धांतों पर संदेश होने लगता है, आपको, पर सच्चाई आपके साथ है, आप अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं, तो कोई व्यक्ति या कोई खराब परिस्थिति वास्तव में आपका कुछ नुकसान नहीं कर सकते. अंततः आपको समझ आता है कि आप जैसे हैं वह आपका सर्वश्रेष्ठ संस्करण है.
आपकी नियत अगर सही है, तो नीतियां स्वतः ही ठीक होती जाती हैं. और इसी से आपको परम संतुष्टि या परम आनंद, जो भी आप चाहते हैं, मिलेगा.
नकारात्मकता कुछ समय के लिये उत्सव मना सकती है, पर अंततः हारती है, बिखर जाती है.
प्रभु श्रीराम जानते थे कि विभीषण जी शत्रु के यहां से आये हैं. पर हनुमान जी को उन्होने समझाया कि भले ही वो शत्रु के यहां से आये हैं लेकिन हमारे साथ सच्चाई है. सब कुछ जानकर, समझकर और सारे भेद ले लेने के बाद भी विभीषण जी हमारा कुछ नुकसान नहीं कर पायेंगे.
महाकवि तुलसीदास जी के शब्दों में,
"निर्मल मन जन सो मोहिं पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा.
भेद जान पाठवां दससीसा,
तबहुं न कछु भय हानि कपीसा."
निष्कर्ष के तौर पर सिर्फ इतना कहूंगा कि अपने भीतर की सादगी और सच्चाई को कभी खत्म न होने दें. आपके मूलभूत व्यक्तित्व में यही वो वस्तुएं हैं जो आपके जीवन में सबसे कीमती है, जिनसे आपको वह सब मिलेगा जिसके आप वास्त्विक अधिकारी हैं, जो अंततः आपको सफ़ल बनायेंगी.
जय श्री राम!
😊🙏
अभिषेक वानिया
प्रेरणादायक 🙏
ReplyDeleteBahut hi shandaar..... awaiting for more blogs
ReplyDeleteBahut hi badhiya....awaiting for more blogs😊
ReplyDeleteNice 🌞
ReplyDeleteVery good, wonderful explanation
ReplyDeleteआपके विचार भी आपकी ही तरह निर्मल और निष्कपट हैं। आपको बहुत सारी शुभकामनाएं बेटा खुश रहो।
ReplyDeleteNice 👍👍
ReplyDelete👏🏻
ReplyDelete👏👏
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा और जीवन में व्यवहार में अनुकरणीय विचार हैं 👍👍
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सुलझे हुए विचार है जो व्यक्तित्व को निखार ने में सहयोग करते हैं
ReplyDeleteउत्कृष्ट 🙏🙏
ReplyDelete🙏
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