Wednesday, January 1, 2025

विदेशी नववर्ष?

बहुत वजहें हैं हमारे पास, रोने की, दुख मनाने की..
कुछ गिनती के पल हमें मिलते हैं, हँसने - मुस्कुराने - खिलखिलाने के..

तब क्या ही फर्क पड़ता है कि जॉर्जियाई (अंग्रेजी) कैलेंडर बदला है, या भारतीय कैलेंडर. क्या ही फर्क पड़ता है कि जन्मदिवस और वर्षगांठ मनाये जा रहे है, या फिर क्रिसमस और होली - दिवाली.

जब भी जीवन में इस तरह के अवसर आते हैं, वो हमें कुछ वजह देते हैं, अपनों के साथ उत्सव मनाने की, अपनों के साथ हँसने - मुस्कुराने की, अपनों के साथ कुछ पल बिताने की.

क्या इन खूबसूरत पलों को हम यह कहकर व्यर्थ गवां दें कि ये भारतीय नहीं विदेशी है, वो भी सिर्फ अनावश्यक अहंकार को उचित ठहराने के लिये!?

सम्भवतः नहीं!

फिर बनाएं कोई योजना, और निकलें अपने घर से बाहर, अपने परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, या फिर अकेले ही.. और जीवन में कुछ खुशी के पल जोड़ें.



सिर्फ इतना ध्यान रखें कि उत्सव मनाने की हमारी विधियों से किसी के दिल को ठेस न लगे, किसी का नुकसान न हो, किसी को कोई चोट न पहुंचे, अपने स्वाद या मजे के लिये किसी जीवित रचना को मारना न पड़ें, प्रकृति का क्षरण न हो..

तो.., बेहतर जीवन स्तर, बेहतर स्वास्थ्य, अधिक उन्नति और अधिक खुशियों के साथ वैश्विक नववर्ष 2025 पर आपको बहुत शुभकामनाएं!


सब नर करहिं परस्पर प्रीती,
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीती!

जय श्री राम!
😊🙏

✍️ Prof. Abhishek_Vaniya
instagram.com/Abhishek_Vaniya

Friday, December 6, 2024

अपरपिक्व सत्य

 सत्य?


मेरा बहुत ज्यादा न तो अनुभव है, और न मेरे पास एक परिपक्व समझ है.


सत्य को लेकर मेरा मत यह है कि सत्य परम (absolute) है, जो किसी भी प्राचल (parameter) पर निर्भर नहीं करता.


कुछ मैं जनता हूं, कुछ आप जानते हैं, कुछ अन्य लोग जानते हैं. हममें से सभी की जानकारियां भिन्न हो सकती हैं, अथवा सभी की समान हो सकती हैं. यह भी संभव है कि कुछ जानकारियां उभयनिष्ट (comon) हों और कुछ एकदम विपरीत.


कमाल की बात यह है कि हर व्यक्ति के पास सही जानकारी होती है. पर सब आधा अधूरा जानते हैं, और वैचारिक मतभेद यहीं से उत्पन्न होते हैं.



आप लोग समुच्चय सिद्धांत (Set Theory) के बारे में संभवतः जानते होंगे. उस सिद्धांत के रूप में यदि अभिव्यक्त किया जाये तो सत्य एक सार्वत्रिक समुच्चय (Universal Set) है और हम सब उस समुच्चय का थोड़ा थोड़ा हिस्सा अपने में लिऐ हुए हैं. 


समझने वाली बात यह है कि इस प्रकार का समुच्चय असीमित है. और मजे की बात यह है कि हम सभी उस सार्वत्रिक समुच्चय के अंदर की बात ही जानते हैं. तो तकनीकी रूप से हममें से किसी के भी विचार गलत नहीं है, बस वो आधे अधूरे हैं.


हमें यह समझना होगा कि मैं सबकुछ नहीं जानता. अथवा "मैं गलत हो सकता हूं," इसकी पूरी संभावना है.


✍️ Prof. Abhishek_Vaniya

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Tuesday, October 8, 2024

2024 में भौतिकी का नोबल पुरस्कार

एआई के अग्रदूत एवम कंप्यूटर विशेषज्ञ, गूगल में प्रमुख भूमिका देने वाले ब्रिटिश जेफ्री हिंटन और मशीन लर्निंग, भौतिकी, रसायन के साथ साथ जीव विज्ञान के प्रोफेसर अमेरिकी जॉन हॉपफील्ड को संयुक्त रूप से भौतिकी में 2024 का नोबेल पुरस्कार दिया गया.


हिंटन और हॉपफील्ड ने एआई (AI, Artificial Intelligence, कृत्रिम बुद्धिमत्ता), मतलब शरीर के तंत्रिका तंत्र की नकल करके मानव मस्तिष्क की तरह कार्य करने वाली मशीनों को विकसित करने के लिये विश्व को मूलभूत सिद्धांत एवम तकनीकें उपलब्ध कराई हैं. इस दिशा में आज जो भी कार्य हो रहे हैं, उसकी नींव इन्ही वैज्ञानिकों के द्वारा रखी गई है. वर्तमान के एडवांस मशीन लर्निंग के लिए हम इनके द्वारा बताये गये मूल सिद्धांतों पर ही निर्भर हैं.

आसान शब्दों में, यह तकनीक मानव मस्तिष्क की तरह कार्य करने वाले कंप्यूटर बनाने में मदद करती है. जिस तरह हम रंगों, चित्रों, ध्वनियों, अक्षरों, प्रतीकों आदि को पहचानते हैं, उसी तरह मशीनों में इस पहचान को विकसित करने के लिए हम वैज्ञानिकों हिंटन और हॉपफील्ड के द्वारा बनाई गई तकनीकों का उपयोग करते हैं.

हालांकि हिंटन और हॉपफील्ड स्वयं मानते हैं कि भविष्य में इस तकनीक का भयावह दुष्परिणाम हमें देखने को मिल सकता है.

इस वर्ष "for foundational discoveries and inventions that enable machine learning with artificial neural networks (कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क के साथ मशीन लर्निंग को सक्षम करने वाली आधारभूत खोजों और आविष्कारों के लिए)” विषय पर भौतिकी का नोबल पुरस्कार दिये जाने पर हालांकि कुछ भौतिकी एवम अन्य विषय विशेषज्ञों द्वारा विरोध व्यक्त किया गया है, क्योंकि वैज्ञानिकों जेफ्री हिंटन और जॉन हॉपफील्ड के जिन कार्यों एवम शोधों के लिये भौतिकी का नोबेल पुरुस्कार दिया गया है, वे प्रत्यक्ष रूप से भौतिक विषय से जुड़े नही हैं. ये एआई (AI) के क्षेत्र में शोध कार्य हैं.

पर विज्ञान में आज इन महान व्यक्तियों के दिये गये योगदान से ही हम इन विकसित तकनीकों को देख पा रहे हैं, उनका उपयोग कर पा रहे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्राहक सेवा, निर्णय लेना, एवम अन्य बहुत से क्षेत्रों में कार्यों को आसान बनाने वाली तकनीकों को विकसित करने वाले इनके महान कार्यों को हमरा नमन है.


✍️ Prof. Abhishek_Vaniya

Tuesday, October 1, 2024

पितरों का तर्पण क्यों करें?

यहां एक महत्तवपूर्ण परम्परा का महत्त्व व्यक्त करने की कोशिश की गई है, जिसे "तर्पण" कहा जाता है.

 पितरों का तर्पण क्यों करें?
हमें तर्पण क्यों करना चाहिए, और क्या सिर्फ़ एक परम्परा का निर्वहन करने के लिये हमें तर्पण करना चाहिए? बिल्कुल नही..

इसका महत्व सिर्फ एक परम्परा से बहुत उपर है.
पितरों का तर्पण करने का अपना विशेष महत्व है. यह परम्परा हमें याद दिलाती है कि हमारे पूर्वज अथवा पितृ हमें कहीं से देख रहे हैं, हमारा उत्कर्ष माप रहे हैं.


यह परम्परा वास्तव में सालभर किये गए हमारे कर्मों के एक मूल्यांकन का अवसर होता है. स्वयं से एक प्रश्न होता है कि हमारे सम्माननीय पूर्वज, हमारे परिवार अथवा कुटुम्ब की जो प्रतिष्ठा बनाकर गये हैं, क्या हमने उसे बनाये रखा?

पूर्वजों द्वारा छोड़कर गये मान सम्मान, वैभव एवम यश को हम कितना आगे ले गये?

परिवार, कुटुम्ब और समाज के उत्थान एवम विकास के लिये सालभर में हमने क्या क्या किया?

क्या हमने कोई ऐसा कार्य तो नही किया, जिससे हमारे सम्माननीय पूर्वजों की मान प्रतिष्ठा को चोट लगी हो, उनकी अंतरात्मा को कोई दुख पहुंचा हो?

क्या हम उन मानव मूल्यों का अनुसरण कर रहे हैं, जो हमारे पूर्वज हमें सौंप कर गये थे?

आप श्राद्ध पक्ष में, अथवा जब भी तर्पण करने जाएं, एक स्व मूल्यांकन करें कि हमने कुछ ऐसा कार्य तो नहीं किया जिससे हमें अपने पूर्वजों से नजरें चुरानी पड़ जाएं?

श्राद्ध अथवा तर्पण के दौरान पिंड दान करना, कौवे आदि पक्षियों को कुछ खिलाना, गायें अथवा धन दान करना, ब्राह्मण भोज कराना आदि तब तक किसी भी तरह से उचित अथवा लाभदायक नही है, जबतक आप श्राद्ध का वास्ताविक महत्त्व समझकर स्वयं का, परिवार, कुटुम्ब एवम समाज का कोई कल्याण न कर दें.

तो अगली बार जब भी आप अपने पितरों एवम पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिये तर्पण अथवा श्राद्ध करने जायें, तो पहले एक समान्य स्वामूल्यांकन करें, कि क्या वाकई आपने कुछ बड़ा और सकारात्मक कार्य किया है, अथवा क्या आप उस दिशा में अग्रसर हैं?

इसके साथ इस परम्परा से आपको प्रेरणा मिलनी चाहिए, कि जो भी सकारात्मक कार्य पूर्वज नही कर पाये, अथवा उनका जो कार्य अधूरा रह गया है, उसे हमें पूरा करना है.

वास्तव में तभी तर्पण करना सार्थक होगा. अन्यथा सिर्फ परंपरा का निर्वहन करना पर्याप्त नही होगा.

तर्पण के वक्त अपने पूर्वजों को भरोसा दे कर आएं कि आप कोई भी गलत अथवा नकारात्मक कार्य नही करेंगे. उन्हें वचन देकर आएं कि आप बहुत मेहनत करेगें और उनकी प्रतिष्ठा को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जायेंगे, और एक दिन निश्चित ही आप उन्हें गौरवान्वित करेगें.


✍️  Prof Abhishek_Vaniya

Friday, September 27, 2024

तथाकथित धर्म, क्यों?

 हर जगह धर्मों का झगड़ा है, साहब!

मेरे आधिकार क्षेत्र में होता, तो मैं सबसे पहले दुनिया के सभी तथाकथित धर्मों, महजबों, पंथों पर बैन लगा देता. दुनिया के किसी भी कोने में हमें किसी भी तथाकथित धर्म की आवश्यकता नही है..

सनातन संस्कृति या अन्य तथाकथित धर्मों को मैं धर्म के बजाये दर्शन मानता हूं, जिनका वास्तविक स्वरूप हम भूल चुके हैं.

जिस तरह महान श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा की परम्परा को बंद करके गोवर्धन पर्वत की पूजा की परम्परा शुरू की थी, मैं भी सारे तथाकथित देवी देवताओं के स्थान पर प्रकृति, धरती, पेड़ पौधे, जंगल, पहाड़, पशु पक्षियों, नदियां, किताबें (ज्ञान).. आदि की पूजा कराता (मैं स्वयं अब भी यही करता हूं).



वास्तव में हमारा सनातन धर्म और भारतीय दर्शन हमें प्रकृति की पूजा करने के लिये ही प्रेरित करते है. प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को ही हम मूर्तियों और आकृतियों के रूप में पूजते हैं. पर दुख की बात यह है कि उस पूजन के पीछे का उद्देश ही हमने ताक पर रख दिया है.

हम सरस्वती माता को तो पूजते हैं, पर वो जिस ज्ञान का प्रतीक हैं, उस ज्ञान को पाना तो छोड़िये, हम ज्ञान का सम्मान भी नही करते हैं.

हम देवी लक्ष्मी को तो पूजते हैं, पर जिस माध्यम से हमें लक्ष्मी (धन) प्राप्त होता है, उसी माध्यम (उदाहरण शासकीय सेवा) का हम सम्मान नहीं करते, अपना कर्तव्य ठीक से नही निभाते (कितने ही भ्रष्टाचार सरकारी नौकरी वाले करते हैं).

हम धरती माता को तो पूजते हैं, पर धरती माता को कितना हमने बिगाड़ रखा है. हमने नदियों, पर्वतों, जंगलों, मिट्टी, कुछ भी नहीं छोड़ा है, सबकुछ प्रदूषित करके रख दिया है. नदियां हमने प्रदूषित कर दीं, जंगल हमने काट दिये, पहाड़ काट दिये, पशु पक्षियों की लाखों प्रजातियां विलुप्त हो गईं, और लाखों विलुप्ती की कगार पर हैं.. 

भारतीय दर्शन एवम सनातन संस्कृति में मूर्ति पूजा का जो मूल आधार था कि प्रकृति हमारी जीवनदायिनी है, इसीलिए हमें प्राकृति का सम्मान करना है, हमें प्रकृति की रक्षा करनी है. और इसीलिये हमने प्राकृति के विभिन्न स्वरूपों को विभिन्न प्रतीकों (सरस्वती माता, लक्ष्मी माता, सूर्य देव, नर्मदा मैया, गंगा मैया, धरती माता आदि) के रूप में पूजना शुरु किया था.

पर उस प्रतीक को पूजने के पीछे का मुख्य उद्देश ही हम भूल गये हैं, और सिर्फ़ प्रतीक पर रुक गये हैं. प्राकृति की रक्षा और सम्मान करने की बजाये, हमने प्राकृति को सिर्फ भोगना शुरु कर दिया है.

क्या यही वजह नही है, कि इतना मजबूत, सक्षम, और हर तरह से वैज्ञानिक सनातन धर्म आज इतना कमजोर हो गया है?

✍️ अभिषेक वानिया
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Monday, July 15, 2024

A Message To My Students

Good evening, students bachchon! 🤗
I hope you are enjoying your vacation n all are doing well. 😊

Students, your new session is going to start, so I feel it's correct time to talk about some important things.

 Basically I am going to talk about two things, must check the second part.

[1.] First, Something about your student life (in the context of your upcoming juniors), as you aren't just juniors.

[2.] Second, Something about your career, as you have successfully completed year one of this degree program.


[1.]   So, filhaal toh aap sabhi institution mein juniors hain. But, jaldi hi college mein naye admission shuru honge n aapko bhi apne juniors milenge, aap bhi kuchh logon ke senior ho jaayenge.

Dear students, aapke juniors mein adhikansh students first time ghar se baahar niklenge, adhikansh apne ghar se door, ek anjaan shahar mein ajnabiyon ke bich aakar rahenge, toh unke saath kuchh galat n ho, woh log misguide n ho, iska dhyaan ham sabhi ko rakhna hai, afterall ab aap sabhi JEC Family ka hi hissa hain.

Jab aap sabhi yahaan aaye the, toh aap logon ko bhi starting mein kuchh issues rahe honge, that's normal.

So, apne juniors ke liye aap kya kar sakte hain?

1. Jo kuchh bhi positive aapke seniors ne aapke saath kiya hai, woh sab aapko apne juniors ke liye bhi karna hai.

2. Positive chijen rahi hain toh negative bhi ho sakti hain. But negative chijon ko aapko khatma karna hai, apne juniors mein transfer nahi karna hai.

3. Kuchh nayaa, jo aapko lagta hai aisaa bhi honaa chahiye, n woh juniors ke liye beneficial rahega toh wo bhi aapko shuru karna chahiye.

Sahi traditions hamein barkaraar rakhne hain, n galat wale khatm karne hain.

Ultimately, aapka attitude hona chahiye ki juniors ko aapko support karna hai, sahi guidance dena hai, misguide hone se bachaana hai. N I'm sure that you all are going to perform your responsibilities.. 😊



[2.]   If I talk about your careers, so I guess you have already decided about your career, stream, future etc but as a teacher that's my duty and also moral responsibility that I guide my students somehow.

Students alongside your academics and degree it's right time that you should be sure about your future. You are at your earlier stage so you have many options, I've tried to talk about some of those bellow:

1. You can prepare for GATE if you want to join PSUs or you are going to plan for higher education like MTech and PhD or intrested to join a scientific n research center.

2. Alongside GATE you can prepare for other such exams like SSC Junior Engineer, Sub Engineer etc.

3. If you are interested in Civil Services you can start a basic preparation for PSC examinations. 

4. Most of engineering students prefer Corporate and Private Sectors, so you should start working with practical experiences to enhance your skills.

5. Some of you can opt for some diffrent fields, like MBA, after your graduation. So you should start your preparation for CAT, MAT, CMAT, SAT, GMAT, NMAT or any other such examination *(basically any one of those, but your aim should be an IIM atleast).

6. Some students also opt for startups and businesses, so you can start a foundation for it with some of your classmates.

All these are basic fields that most of student generally choose among those as an engineering student.

Many more things as like SSC, Railways, Banking, Army, Navy and other government services, so considering your interest and accepting your capabilities you should be clear about your future.

Students, take sufficient time, analyse yourself, do some researches, but do not get too confused. You have options, so instead of getting confused choose the best one for you.

Do not waste n take a lot time, but take sufficient time to understand all those things, actually to understand yourself. So follow a proper strategy, and start working on it.

Alongside this, start working on atleast one non academic skill. It could be an art, music, sports, literature or something else.

But in sabke saath aapkee degree and academic course aapki first most priority honi chahiye. Apne degree program, academic syllabus and Exams ko kabhi casually nahi lena hai.

Analyse the mistakes that you made in year 1 and start with a fresh mind. If somehow you made mistakes, instead of feeling guilty try to realise all those and start working on your weaknesses, you are definitely gonna do much better.

I'm sure that you all are brave, wise n honest, n gonna do considerably great things for yourself, for your family, this institution, this country and gonna contribute to make this world a better place.

God bless you all! ❤️
With best wishes, love n blessings,
Professor Abhishek Vaniya

Thursday, May 9, 2024

The Breakup Note

 "Do I love you?"

Yes, I do.. obviously.


You can consider this in the same way as I love a few dear cousins, my friends, my colleagues, my teachers, my students and some other people..


But I am not afraid to accept that in your case, this love is somehow different.. obviously.. I always considered you more than a friend.

It can be less than the love for my family, my brother and Maa Paa, obviously, they are the foremost priorities in my life, but much more than the people I do not love (just saying. Infact, there is no one I do not love).



So. what's wrong here!?

Did I consider ourselves for possibilities like getting married or being in a relationship?

Naah.. I am, I was very clear.. since starting..

Firstly you are already in a relationship with someone.

Secondly.. I believe in "family first", and I would try not to go beyond my family's choices and wishes, with my maximum possible efforts.

Thirdly.. I don't want any temporary relationship (that's my personal philosophy, and obviously it varies from person to person.. and I respect it if someone does so).


When we interact, sometimes it may appear like I want so..


So yes.. I feel so.. as is obvious, I am a normal human, and I have all the same desires as usually as a common human.


Whenever I express myself, sometimes it might be as simple as flirting, sometimes it might be a kind of affection, while sometimes it can consist a serious emotion.


But what I feel, what I want, and what I do are totally different things. And I am very clear about it.





Why did I interact with your family?

Wherever I feel that I would be positively responded and treated well.. I do so.


I guess.. that's my mistake, I always forget my limitations. And thanks for your lesson about my limits.



Well.. What did I expect from your side?

It should not be like that.. but I would say again that I am a common human.


I should not expect.. but I did so..

I just wanted some talks whenever I am sad, feeling depressed, whenever I need some suggestions, or when I want to share some personal things.

Also, (if easily possible) I wanted some meetings, to go somewhere and spend some time together, just like some hangouts (a kind of..), nothing much.


That's again my mistake.



Still.. I would like to mention..

That "pyaar karna.." is one of my fundamental characteristics.


And obviously.. I cannot change my fundamental characteristics just because of someone's negative responses or because they mistreated me.. And in the same consecution I would do the same in your case.


When I say, "I can not change my fundamental characteristics just because of someone's negative responses or because they mistreated me.." This is a general statement, not a personal comment on you.



At the end.. I want to say,


Although you don't need, you are capable enough for everything, and you have better availability of people in your life, but still I would say, "whenever you need, I will always try to be available with the best of me, and I will always be your well wisher,"



Also, it is very obvious that as time passes all the emotions, memories of all those beautiful moments when we used to interact can fade.. but, in my memories you will be an inseparable part of my life..


Forever.. with love (If you believe so)

Abhishek Vaniya

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Saturday, April 13, 2024

सहज व्यक्तित्व

"निर्मल मन जन सो मोहि पावा,

मोहि कपट छल छिद्र न भावा."


रामचरित्रमानस में महाकवि तुलसीदास जी द्वारा कही गईं ये पंक्तियां मुझे अत्यंत प्रिय हैं.


वैसे तो इन पंक्तियों का संदर्भ रामचरित्रमानस है, पर वास्तव में इनका महत्त्व सार्वभौमिक है. जो आज भी उतना ही है जो त्रेता युग एवम महाकवि तुलसीदास जी के युग में रहा होगा.


प्रसंग प्रायः आप सभी को पता होगा, ये तब की बात है जब विभीषण जी महाराज रावण के दरबार में अपमानित होकर प्रभु श्री राम की शरण में आये थे. मैं उस विषय में ज्यादा बात नहीं करुंगा. यहां मैंने इस चौपाई की एक सामान्य व्याख्या करने की कोशिश की है.


वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन पंक्तियों को हम ईमानदारी, निष्ठा, सादगी, सहजता आदि के संदर्भ में हमारे व्यक्तिगत, व्यवसायिक एवम अन्य तरह के संबंधों, सफलताओं, असफलताओं आदि से जोड़ कर देख सकते हैं.


संबंधों का टूटना अथवा अस्वीकृति, परीक्षा में अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होना, व्यवसाय में उचित लाभ न होना, आदि की वजह से एक अच्छा से अच्छा व्यक्ति भी टूट सकता है, हतोत्साहित हो सकता है.


अक्सर नकारात्मक परिणाम एक अच्छे व्यक्ति को निराश कर देते हैं, विशेषकर जब वह अपनी संक्रमणकालीन अवस्था में होता है, अपरिक्वता से परिक्वता की ओर अग्रसर होता है. पर वास्तव में ये नकारात्मक परिणाम ही होते हैं जो एक व्यक्ति को परिपक्व एवम अधिक दृढ़ बनाते हैं.


इन नकारात्मक परिणामों से जो अनुभव हमें मिलता है, जो सीखें हमें मिलती हैं, वो कोई शिक्षण संस्थान या कोई व्यवसायिक परामर्शदाता आपको नहीं दे सकता.


थोड़ा विश्लेषण करने पर आपको समझ आता है कि कहां और क्या गलतियां हुई हैं, कहां संतुलन नहीं बन पाया. फिर आपका कार्य एवम प्रदर्शन पहले से कहीं बेहतर होता है. बेहतर परिणाम आपको मिलते हैं, कई बार आपकी अपेक्षा से भी बेहतर.


खैर, परिणाम जो भी हो, वह द्वितीयक है. प्राथमिक है व्यक्तित्व विकास, जिसमें आपका चरित्र, व्यवहार आदि सम्मिलित हैं.


परिणाम से कहीं अधिक महतवपूर्ण है आपका व्यक्तित्व, आपकी ईमानदारी, आपकी निष्ठा, सादगी, सहजता, सरलता आदि. आप स्वयं में सकारात्मकता को बनाए रखते हैं तो परेशानियों का सामना आपको करना पड़ सकता है, पर अंत में जीत आपकी होगी, जो निश्चित है. इस तथ्य को आप चाहें विज्ञान के संदर्भ में देखें, चाहे दर्शन या चाहे आध्यात्म, आपको सकारात्मक परिणाम मिलना तय है. 


यह समय आपके जीवन में पतझड़ की तरह होता है. आपको लगता है कि आपका नुकसान हो रहा है, पर वास्तव में आपका जीवन एवं आपका व्यक्तित्व पहले से बेहतर होने जा रहे हैं.



कुछ असफलताएं, कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं, कुछ वक्त के लिये आपको प्रभावित तो कर सकती हैं, पर आपका मूलभूत व्यक्तित्व नहीं बदल सकतीं. असफलताओं के चलते आपको अपने सिद्धांतों पर संदेश होने लगता है, आपको, पर सच्चाई आपके साथ है, आप अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं, तो कोई व्यक्ति या कोई खराब परिस्थिति वास्तव में आपका कुछ नुकसान नहीं कर सकते. अंततः आपको समझ आता है कि आप जैसे हैं वह आपका सर्वश्रेष्ठ संस्करण है.


आपकी नियत अगर सही है, तो नीतियां स्वतः ही ठीक होती जाती हैं. और इसी से आपको परम संतुष्टि या परम आनंद, जो भी आप चाहते हैं, मिलेगा.


नकारात्मकता कुछ समय के लिये उत्सव मना सकती है, पर अंततः हारती है, बिखर जाती है.


प्रभु श्रीराम जानते थे कि विभीषण जी शत्रु के यहां से आये हैं. पर हनुमान जी को उन्होने समझाया कि भले ही वो शत्रु के यहां से आये हैं लेकिन हमारे साथ सच्चाई है. सब कुछ जानकर, समझकर और सारे भेद ले लेने के बाद भी विभीषण जी हमारा कुछ नुकसान नहीं कर पायेंगे.


महाकवि तुलसीदास जी के शब्दों में,


"निर्मल मन जन सो मोहिं पावा,

मोहि कपट छल छिद्र न भावा.


भेद जान पाठवां दससीसा,

बहुं न कछु भय हानि कपीसा."


निष्कर्ष के तौर पर सिर्फ इतना कहूंगा कि अपने भीतर की सादगी और सच्चाई को कभी खत्म न होने दें. आपके मूलभूत व्यक्तित्व में यही वो वस्तुएं हैं जो आपके जीवन में सबसे कीमती है, जिनसे आपको वह सब मिलेगा जिसके आप वास्त्विक अधिकारी हैं, जो अंततः आपको सफ़ल बनायेंगी.


जय श्री राम!

😊🙏


अभिषेक वानिया

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Sunday, August 6, 2023

ग़ज़ल: "आवश्यकता क्या है!"

तलब है, तो सब्र की आवश्यकता क्या है!
दवा ए दर्द की आवश्यकता क्या है!

मयख़ाने में हैं, तो जी भरकर लीजिए,
इन छोटे पैमानों की आवश्यकता क्या है!

तबाह तो होना है मुक्कमल जहां को इक दिन,
फ़िक्रमंदी ए सितम की आवश्यकता क्या है!

जंग ए ज़िंदगी तो अनवरत है,
अंजाम की, इसके, आवश्यकता क्या है!

ज़मीं ओ आसमां, सारा जहां है हमारा,
दो गज़ के ठिकानों की आवश्यकता क्या है!

मैं मशग़ूल हूं, सफ़र ए ज़िंदगी मे,
दख़लअंदाजी की आवश्यकता क्या है!

मिजाज मिरा, तो यूं भी बदनाम है,
बेवजह ग़फ़लतों की आवश्यकता क्या है!

किस क़दर खुला हूं मैं, जरा आकर तो देखिए,
चिलमनों से झांकने की आवश्यकता क्या है!

आसमां भी होगा, बुलंदियां भी होंगी,
पंख फड़फड़ाने की आवश्यकता क्या है!

अजी.., कुछ तो सब्र कीजिए जनाब,
इस जल्दबाज़ी की आवश्यकता क्या है!

Saturday, August 5, 2023

तकनीकी शिक्षा क्यों आवश्यक है?

तकनीकी शिक्षा क्यों आवश्यक है?

प्रिय देश वासियों!
मैं एक महत्वपूर्ण विषय की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं.

1.) क्या आपको भी लगता है, कि हमें देशी / Made In India उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए?

2.) क्या आपको भी लगता है, कि हमें विदेशी (विशेषकर Chinese) Products का वहिष्कार करने की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्रीय / घरेलू उत्पादों को समर्थन प्राप्त हो, और देश के छोटे / मध्यम / कुटीर उद्योगों पर निर्भर रहने वाले व्यक्ति भी अपनी आय बेहतर दर से बढ़ा सकें?

3.) क्या आपको भी लगता है, कि जिन वस्तुओं / उत्पादों / सेवाओं के लिए हम विदेशी निर्माताओं पर निर्भर हैं, वो सब हमारे देश में ही हों, ताकि देश की निर्भरता गैर भारतीय निर्माताओं पर कम से कम हों, और देश की GDP बेहतर प्रदर्शन कर सके?

यदि इनमें से किसी भी सवाल का जवाब "हां" हैं, तो इस और बढ़ने के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?

और ऐसे ही बहुत से सवाल हैं, जिनमें हमारे देश की GDP, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य Structure, प्रति व्यक्ति आय वगैरह में बेहतरी होने की स्वाभाविक अभिलाषा हो.

पर..

क्या आपको लगता है, कि दिवाली आने पर Chinese झालर और पटाखों / आतिशबाजियों का विरोध करके आप इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं?

क्या आपको लगता है, कि होली आने पर Made In China रंगों के वहिष्कार को लेकर Social Media Posts के जरिए आप देश को बेहतर बना सकते हैं?

क्या आपको लगता है, कि India - China / India - Pakistan Border पर देश के वीर सपूतों के शहीद होने पर Chinese Smartphones या अन्य Chinese उत्पादों के बारे में नकारात्मक बातें करके आप उन्हें देश में उपयोग से रोक सकते हैं?

यदि आपको यही सही लगता है, तो आपको अब भी काफी कुछ सीखने / समझने की आवश्यक्ता है.

स्वाभाविक रूप से हम सभी बदलाव चाहते हैं.
निःसंदेह, हम सभी में देश को आत्मनिर्भर बनाने की प्रबल इक्षा है.
बेशक, हम सभी क्षेत्रों में देश की बेहतरी चाहते हैं.

तो फिर.. ऐसा क्या है, जो हमें इस तरह के लक्ष्य हासिल करने में सहायक हो सकता है?

मेरा निजी अनुभव कहता है, कि ये सिर्फ शिक्षा है.
यह सिर्फ मेरा निजी अनुभव नहीं है, यह वास्तविकता है, एक तथ्य है.

क्या आप जानते हैं, कि देश / विश्व के इतिहास / Mythology में जो भी महान हस्तियां हुई हैं, या मानवता के समर्थन में जिन्होंने कुछ भी उल्लेखनीय कार्य किया है उन सभी ने शिक्षा को बहुत मझत्व दिया है. उन सभी ने किसी न किसी रूप में शिक्षा ग्रहण की है.

भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन, सिकंदर, चंद्रगुप्त / चाणक्य, महात्मा गांधी, भीमराव अंबेडकर, एपीजे अब्दुलकलाम, नेल्सन मंडेला, सुंदर पिचाई, बिलगेट्स.. और भी ऐसे अनगनित उदाहरण हमें मिल जायेंगे.

इन उदाहरणों में से अधिकांश के पास पर्याप्त संसाधन और अनुकूल वातावरण नहीं थे, कई तरह की परेशानियों और विपरीत परिस्थितियों में भी ये डटे रहे और कभी भी इन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. इन सबके बावजूद इन्होंने शिक्षा के महत्व को कम नहीं आंका. यहां तक कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए इन्होंने हमेशा ही शिक्षा को सर्वोपरि रखा.

आप व्यक्तिगत रूप से बेहतर होने की अभिलाषा रखते हों, या आप सामाजिक विकास की बातें करते हों, या देश की बेहतरी यहां तक कि विश्व के बेहतर होने का सोचते हों.., आप शिक्षा के महत्व को दरकिनार नहीं कर सकते.

वास्तव में, शिक्षा का कोई विकल्प नहीं है
शिक्षा ही वह हथियार है, जो बदलाव ला सकता है.


अब ये आपकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है, ये आपको स्वयं सोचना है, कि आप किस तरह की शिक्षा पाने पर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. यह आवश्यक नहीं है, कि आप गणित, विज्ञान या Engineering विषयों में ही बेहतर हों. आपका रुचि का कोई भी विषय हो सकता है, जिसमें आप सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके. आपका विषय इतिहास हो सकता है, भाषा एवं साहित्य भी हो सकता है, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, चिकित्सा, जीव विज्ञान, भूगोल या कोई अन्य विषय भी हो सकता है, जिसमें आप अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें.

इनमें से प्रत्येक विषय आवश्यक है, मानव संसाधन के विकास के लिए, व्यक्तिगत रूप से / समाजिक रूप से / राष्ट्र या विश्व कल्याण के लिए..

लेकिन..

जब देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात आती है, देश की प्रति व्यक्ति आय एवं जीवन स्तर में बेहतर होने की बात आती है, तब सर्वाधिक महत्व होता है, तकनीकी शिक्षा, Engineering, गणित एवं विज्ञान विषयों का.

जब हम तकनीकी रूप से Well Skilled (कुशल) होंगे, तभी तो हम देश की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम होंगे. जब हम काबिल होंगे, तभी तो हम देश में ही उन वस्तुओं / सेवाओं को देश में निर्मित कर पाएंगे, और देश को आत्मनिर्भर बना पाएंगे.

वास्तव में, जब हम किसी भी परंपरा / विचारधारा / आदत में बदलाव की बात करते हैं (जैसे देश की Chinese Products पर निर्भरता खत्म करना), तो एक निर्वात उत्पान होता है. और निर्वात किसी भी तरह के बदलाव का विरोध करता है. यदि हम परिवर्तन चाहते हैं, तो बदलाव से पहले हमें विकल्प की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी. और ये तभी हो सकेगा, जब हम स्वयं उत्पादन करने में सक्षम हों, जब हम Well Skilled (कुशल) हों.

जब हम स्वयं उत्पादक होंगे, तो किसी और के उत्पादों की आवश्यक्ता क्यों होगी.

हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएं, या हम जरा भी गैर भारतीय उत्पादों / संसाधनों पर निर्भर न हों, ऐसा संभवतः मुश्किल है. कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में हमें विदेशी उत्पादों / सेवाओं की अवश्यकता पड़ती रहेगी.

लेकिन, अगर हमें आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होना है, हमारे देश को एक सक्षम, मजबूत और विकसित राष्ट्र बनाना है, तो इस ओर ध्यान देना होगा. इसमें समाज एवं राष्ट्र के साथ साथ विश्व कल्याण की भावना भी है.

अंततः निष्कर्ष यही निकलेगा, कि शिक्षा के महत्व को सर्वोपरी रखें, किसी भी परिस्थिति में अपने आपको शिक्षा से दूर न करें, स्वयं को, अपने परिवार जनों, समाज जनों, देशवासियों को शिक्षा का महत्व समझाएं, और उन्हें शिक्षित होने के लिए प्रेरित करें. अपने आप को उस विषय में बेहतर बनाएं, जिसमें आप सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हों. (यदि संभव हो, तो तकनीकी एवं विज्ञान विषयों में).


अपना महत्वपूर्ण समय देने के लिए धन्यवाद!
आप सभी को शुभकामनाएं!
😊🙏

अभिषेक वानिया

कुछ नि:शुल्क ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म का उल्लेख नीचे किया गया है.


ये सभी प्लेटफार्म भारत सरकार द्वारा प्रायोजित हैं, जिन्हें देश के बड़े संस्थान संचालित करते हैं. जहां सीखने - पढ़ने के लिए अधिकांश सामग्री वीडियो एवं पीडीएफ के रूप में नि:शुल्क उपलब्ध हैं. यहां से आप विभिन्न शासकीय सेवाओं के लिए परीक्षाओं की तैयारी भी कर सकते हैं.

Sunday, September 18, 2022

बढ़ चलो अभी

न रुको अभी, न थको कभी,
बढ़ चलो अभी, है विजय तभी.
यूं सुस्त - हार जो बैठ गए,
कुछ हुआ न आज, न और कभी.

है लक्ष्य जो जीवन का रखा,
है पथ वो चुनौतियों से भरा,
हों जितने भी रोध, पर डटा रह,
मत हार मान रुक जा तू कभी.

है आज गहन जो अंधियारा,
कल वहीं असीम उजियारा है.
है लक्ष्य गर लड़खड़ाया जो,
इसको संवार ले आज, अभी.

कितनी ही आंधियां तेज चलें,
जितनी भी धूप, या सर्द लगे,
न ढूंढ आशियां कोई अभी,
जब तक मिला जो ध्येय नहीं.

क्यूं है उदास, क्यों यूं निराश,
कर एक आस यही बार बार,
जो रात अमावस मेरे पथ में,
इक दिया अकेला जले कहीं.

दिन - रात एक बस बढ़ा ही चल,
हर कदम, जो लक्ष्य की ओर चले.
इक बार मान, ठान ले जो तू,
सबकुछ है पास, और यहीं.

विदेशी नववर्ष?

बहुत वजहें हैं हमारे पास, रोने की, दुख मनाने की.. कुछ गिनती के पल हमें मिलते हैं, हँसने - मुस्कुराने - खिलखिलाने के.. तब क्या ही फर्क पड़ता ...