Positive Vibes
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Wednesday, January 1, 2025
विदेशी नववर्ष?
Friday, December 6, 2024
अपरपिक्व सत्य
सत्य?
मेरा बहुत ज्यादा न तो अनुभव है, और न मेरे पास एक परिपक्व समझ है.
सत्य को लेकर मेरा मत यह है कि सत्य परम (absolute) है, जो किसी भी प्राचल (parameter) पर निर्भर नहीं करता.
कुछ मैं जनता हूं, कुछ आप जानते हैं, कुछ अन्य लोग जानते हैं. हममें से सभी की जानकारियां भिन्न हो सकती हैं, अथवा सभी की समान हो सकती हैं. यह भी संभव है कि कुछ जानकारियां उभयनिष्ट (comon) हों और कुछ एकदम विपरीत.
कमाल की बात यह है कि हर व्यक्ति के पास सही जानकारी होती है. पर सब आधा अधूरा जानते हैं, और वैचारिक मतभेद यहीं से उत्पन्न होते हैं.
आप लोग समुच्चय सिद्धांत (Set Theory) के बारे में संभवतः जानते होंगे. उस सिद्धांत के रूप में यदि अभिव्यक्त किया जाये तो सत्य एक सार्वत्रिक समुच्चय (Universal Set) है और हम सब उस समुच्चय का थोड़ा थोड़ा हिस्सा अपने में लिऐ हुए हैं.
समझने वाली बात यह है कि इस प्रकार का समुच्चय असीमित है. और मजे की बात यह है कि हम सभी उस सार्वत्रिक समुच्चय के अंदर की बात ही जानते हैं. तो तकनीकी रूप से हममें से किसी के भी विचार गलत नहीं है, बस वो आधे अधूरे हैं.
हमें यह समझना होगा कि मैं सबकुछ नहीं जानता. अथवा "मैं गलत हो सकता हूं," इसकी पूरी संभावना है.
✍️ Prof. Abhishek_Vaniya
Tuesday, October 8, 2024
2024 में भौतिकी का नोबल पुरस्कार
Tuesday, October 1, 2024
पितरों का तर्पण क्यों करें?
Friday, September 27, 2024
तथाकथित धर्म, क्यों?
हर जगह धर्मों का झगड़ा है, साहब!
मेरे आधिकार क्षेत्र में होता, तो मैं सबसे पहले दुनिया के सभी तथाकथित धर्मों, महजबों, पंथों पर बैन लगा देता. दुनिया के किसी भी कोने में हमें किसी भी तथाकथित धर्म की आवश्यकता नही है..
सनातन संस्कृति या अन्य तथाकथित धर्मों को मैं धर्म के बजाये दर्शन मानता हूं, जिनका वास्तविक स्वरूप हम भूल चुके हैं.
जिस तरह महान श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा की परम्परा को बंद करके गोवर्धन पर्वत की पूजा की परम्परा शुरू की थी, मैं भी सारे तथाकथित देवी देवताओं के स्थान पर प्रकृति, धरती, पेड़ पौधे, जंगल, पहाड़, पशु पक्षियों, नदियां, किताबें (ज्ञान).. आदि की पूजा कराता (मैं स्वयं अब भी यही करता हूं).
वास्तव में हमारा सनातन धर्म और भारतीय दर्शन हमें प्रकृति की पूजा करने के लिये ही प्रेरित करते है. प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को ही हम मूर्तियों और आकृतियों के रूप में पूजते हैं. पर दुख की बात यह है कि उस पूजन के पीछे का उद्देश ही हमने ताक पर रख दिया है.
हम सरस्वती माता को तो पूजते हैं, पर वो जिस ज्ञान का प्रतीक हैं, उस ज्ञान को पाना तो छोड़िये, हम ज्ञान का सम्मान भी नही करते हैं.
हम देवी लक्ष्मी को तो पूजते हैं, पर जिस माध्यम से हमें लक्ष्मी (धन) प्राप्त होता है, उसी माध्यम (उदाहरण शासकीय सेवा) का हम सम्मान नहीं करते, अपना कर्तव्य ठीक से नही निभाते (कितने ही भ्रष्टाचार सरकारी नौकरी वाले करते हैं).
हम धरती माता को तो पूजते हैं, पर धरती माता को कितना हमने बिगाड़ रखा है. हमने नदियों, पर्वतों, जंगलों, मिट्टी, कुछ भी नहीं छोड़ा है, सबकुछ प्रदूषित करके रख दिया है. नदियां हमने प्रदूषित कर दीं, जंगल हमने काट दिये, पहाड़ काट दिये, पशु पक्षियों की लाखों प्रजातियां विलुप्त हो गईं, और लाखों विलुप्ती की कगार पर हैं..
भारतीय दर्शन एवम सनातन संस्कृति में मूर्ति पूजा का जो मूल आधार था कि प्रकृति हमारी जीवनदायिनी है, इसीलिए हमें प्राकृति का सम्मान करना है, हमें प्रकृति की रक्षा करनी है. और इसीलिये हमने प्राकृति के विभिन्न स्वरूपों को विभिन्न प्रतीकों (सरस्वती माता, लक्ष्मी माता, सूर्य देव, नर्मदा मैया, गंगा मैया, धरती माता आदि) के रूप में पूजना शुरु किया था.
पर उस प्रतीक को पूजने के पीछे का मुख्य उद्देश ही हम भूल गये हैं, और सिर्फ़ प्रतीक पर रुक गये हैं. प्राकृति की रक्षा और सम्मान करने की बजाये, हमने प्राकृति को सिर्फ भोगना शुरु कर दिया है.
क्या यही वजह नही है, कि इतना मजबूत, सक्षम, और हर तरह से वैज्ञानिक सनातन धर्म आज इतना कमजोर हो गया है?
Monday, July 15, 2024
A Message To My Students
Thursday, May 9, 2024
The Breakup Note
"Do I love you?"
Yes, I do.. obviously.
You can consider this in the same way as I love a few dear cousins, my friends, my colleagues, my teachers, my students and some other people..
But I am not afraid to accept that in your case, this love is somehow different.. obviously.. I always considered you more than a friend.
It can be less than the love for my family, my brother and Maa Paa, obviously, they are the foremost priorities in my life, but much more than the people I do not love (just saying. Infact, there is no one I do not love).
So. what's wrong here!?
Did I consider ourselves for possibilities like getting married or being in a relationship?
Naah.. I am, I was very clear.. since starting..
Firstly you are already in a relationship with someone.
Secondly.. I believe in "family first", and I would try not to go beyond my family's choices and wishes, with my maximum possible efforts.
Thirdly.. I don't want any temporary relationship (that's my personal philosophy, and obviously it varies from person to person.. and I respect it if someone does so).
When we interact, sometimes it may appear like I want so..
So yes.. I feel so.. as is obvious, I am a normal human, and I have all the same desires as usually as a common human.
Whenever I express myself, sometimes it might be as simple as flirting, sometimes it might be a kind of affection, while sometimes it can consist a serious emotion.
But what I feel, what I want, and what I do are totally different things. And I am very clear about it.
Wherever I feel that I would be positively responded and treated well.. I do so.
I guess.. that's my mistake, I always forget my limitations. And thanks for your lesson about my limits.
Well.. What did I expect from your side?
It should not be like that.. but I would say again that I am a common human.
I should not expect.. but I did so..
I just wanted some talks whenever I am sad, feeling depressed, whenever I need some suggestions, or when I want to share some personal things.
Also, (if easily possible) I wanted some meetings, to go somewhere and spend some time together, just like some hangouts (a kind of..), nothing much.
That's again my mistake.
Still.. I would like to mention..
That "pyaar karna.." is one of my fundamental characteristics.
And obviously.. I cannot change my fundamental characteristics just because of someone's negative responses or because they mistreated me.. And in the same consecution I would do the same in your case.
When I say, "I can not change my fundamental characteristics just because of someone's negative responses or because they mistreated me.." This is a general statement, not a personal comment on you.
At the end.. I want to say,
Although you don't need, you are capable enough for everything, and you have better availability of people in your life, but still I would say, "whenever you need, I will always try to be available with the best of me, and I will always be your well wisher,"
Also, it is very obvious that as time passes all the emotions, memories of all those beautiful moments when we used to interact can fade.. but, in my memories you will be an inseparable part of my life..
Forever.. with love (If you believe so)
Abhishek Vaniya
Saturday, April 13, 2024
सहज व्यक्तित्व
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा."
रामचरित्रमानस में महाकवि तुलसीदास जी द्वारा कही गईं ये पंक्तियां मुझे अत्यंत प्रिय हैं.
वैसे तो इन पंक्तियों का संदर्भ रामचरित्रमानस है, पर वास्तव में इनका महत्त्व सार्वभौमिक है. जो आज भी उतना ही है जो त्रेता युग एवम महाकवि तुलसीदास जी के युग में रहा होगा.
प्रसंग प्रायः आप सभी को पता होगा, ये तब की बात है जब विभीषण जी महाराज रावण के दरबार में अपमानित होकर प्रभु श्री राम की शरण में आये थे. मैं उस विषय में ज्यादा बात नहीं करुंगा. यहां मैंने इस चौपाई की एक सामान्य व्याख्या करने की कोशिश की है.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन पंक्तियों को हम ईमानदारी, निष्ठा, सादगी, सहजता आदि के संदर्भ में हमारे व्यक्तिगत, व्यवसायिक एवम अन्य तरह के संबंधों, सफलताओं, असफलताओं आदि से जोड़ कर देख सकते हैं.
संबंधों का टूटना अथवा अस्वीकृति, परीक्षा में अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होना, व्यवसाय में उचित लाभ न होना, आदि की वजह से एक अच्छा से अच्छा व्यक्ति भी टूट सकता है, हतोत्साहित हो सकता है.
अक्सर नकारात्मक परिणाम एक अच्छे व्यक्ति को निराश कर देते हैं, विशेषकर जब वह अपनी संक्रमणकालीन अवस्था में होता है, अपरिक्वता से परिक्वता की ओर अग्रसर होता है. पर वास्तव में ये नकारात्मक परिणाम ही होते हैं जो एक व्यक्ति को परिपक्व एवम अधिक दृढ़ बनाते हैं.
इन नकारात्मक परिणामों से जो अनुभव हमें मिलता है, जो सीखें हमें मिलती हैं, वो कोई शिक्षण संस्थान या कोई व्यवसायिक परामर्शदाता आपको नहीं दे सकता.
थोड़ा विश्लेषण करने पर आपको समझ आता है कि कहां और क्या गलतियां हुई हैं, कहां संतुलन नहीं बन पाया. फिर आपका कार्य एवम प्रदर्शन पहले से कहीं बेहतर होता है. बेहतर परिणाम आपको मिलते हैं, कई बार आपकी अपेक्षा से भी बेहतर.
खैर, परिणाम जो भी हो, वह द्वितीयक है. प्राथमिक है व्यक्तित्व विकास, जिसमें आपका चरित्र, व्यवहार आदि सम्मिलित हैं.
परिणाम से कहीं अधिक महतवपूर्ण है आपका व्यक्तित्व, आपकी ईमानदारी, आपकी निष्ठा, सादगी, सहजता, सरलता आदि. आप स्वयं में सकारात्मकता को बनाए रखते हैं तो परेशानियों का सामना आपको करना पड़ सकता है, पर अंत में जीत आपकी होगी, जो निश्चित है. इस तथ्य को आप चाहें विज्ञान के संदर्भ में देखें, चाहे दर्शन या चाहे आध्यात्म, आपको सकारात्मक परिणाम मिलना तय है.
यह समय आपके जीवन में पतझड़ की तरह होता है. आपको लगता है कि आपका नुकसान हो रहा है, पर वास्तव में आपका जीवन एवं आपका व्यक्तित्व पहले से बेहतर होने जा रहे हैं.
कुछ असफलताएं, कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं, कुछ वक्त के लिये आपको प्रभावित तो कर सकती हैं, पर आपका मूलभूत व्यक्तित्व नहीं बदल सकतीं. असफलताओं के चलते आपको अपने सिद्धांतों पर संदेश होने लगता है, आपको, पर सच्चाई आपके साथ है, आप अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं, तो कोई व्यक्ति या कोई खराब परिस्थिति वास्तव में आपका कुछ नुकसान नहीं कर सकते. अंततः आपको समझ आता है कि आप जैसे हैं वह आपका सर्वश्रेष्ठ संस्करण है.
आपकी नियत अगर सही है, तो नीतियां स्वतः ही ठीक होती जाती हैं. और इसी से आपको परम संतुष्टि या परम आनंद, जो भी आप चाहते हैं, मिलेगा.
नकारात्मकता कुछ समय के लिये उत्सव मना सकती है, पर अंततः हारती है, बिखर जाती है.
प्रभु श्रीराम जानते थे कि विभीषण जी शत्रु के यहां से आये हैं. पर हनुमान जी को उन्होने समझाया कि भले ही वो शत्रु के यहां से आये हैं लेकिन हमारे साथ सच्चाई है. सब कुछ जानकर, समझकर और सारे भेद ले लेने के बाद भी विभीषण जी हमारा कुछ नुकसान नहीं कर पायेंगे.
महाकवि तुलसीदास जी के शब्दों में,
"निर्मल मन जन सो मोहिं पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा.
भेद जान पाठवां दससीसा,
तबहुं न कछु भय हानि कपीसा."
निष्कर्ष के तौर पर सिर्फ इतना कहूंगा कि अपने भीतर की सादगी और सच्चाई को कभी खत्म न होने दें. आपके मूलभूत व्यक्तित्व में यही वो वस्तुएं हैं जो आपके जीवन में सबसे कीमती है, जिनसे आपको वह सब मिलेगा जिसके आप वास्त्विक अधिकारी हैं, जो अंततः आपको सफ़ल बनायेंगी.
जय श्री राम!
😊🙏
अभिषेक वानिया
Sunday, August 6, 2023
ग़ज़ल: "आवश्यकता क्या है!"
Saturday, August 5, 2023
तकनीकी शिक्षा क्यों आवश्यक है?
Sunday, September 18, 2022
बढ़ चलो अभी
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Good evening, students bachchon! 🤗 I hope you are enjoying your vacation n all are doing well. 😊 Students, your new session is going to s...
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यहां एक महत्तवपूर्ण परम्परा का महत्त्व व्यक्त करने की कोशिश की गई है, जिसे " तर्पण " कहा जाता है. पितरों का तर्पण क्यों करें? हम...
विदेशी नववर्ष?
बहुत वजहें हैं हमारे पास, रोने की, दुख मनाने की.. कुछ गिनती के पल हमें मिलते हैं, हँसने - मुस्कुराने - खिलखिलाने के.. तब क्या ही फर्क पड़ता ...